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प्रियांशु हत्याकांड: मेरे बच्चे का क्या कसूर था.. वो तो मासूम था, मां ने रोते-बिलखते किया दर्द साझा

मेरठ निवासी प्रियांशु अहमदाबाद, गुजरात के माइका कॉलेज में एमबीए सेकेंड ईयर स्टूडेंट था। 10 दिन पहले प्रियांशु की अहमदाबाद में गुजरात पुलिस के कांस्टेबल वीरेंद्र सिंह बढ़ेरिया ने चाकू से गोदकर बीच सड़क बुरी तरह से हत्या कर दी। परिवार के इकलौते बेटे प्रियांशु को गुजरे 10 दिन बीत चुके हैं लेकिन उसकी मां रेनू जैन आज भी 10 दिन पीछे खड़ी है। बेटे को खो चुकी एक मां की ज़िंदगी 10 नवंबर 2024 की रात पर अटकी है। इन 10 दिनों में इस परिवार में बहुत कुछ बदल गया है, लेकिन जिगर के टुकड़े को खोने वाली वो बेबस मां आज भी पहले की तरह दिनभर बेटे के फोन का इंतजार करती है।

जहां मां रीनू जैन रोजाना मोबाइल में रात 10.30 बजे यशु कॉल लिखकर एक अलार्म सेट करती हैं। लेकिन अब मोबाइल में सिर्फ अलार्म बजता है, अहमदाबाद से उनके बेटे के कॉल की रिंग नहीं बजती। ये मां बार-बार मोबाइल देखती है, मैसेज बॉक्स खोलती है। व्हाट्सएप खोलकर यशु का लास्ट सीन देखती है। जैसे ही उसकी नजर लास्ट सीन 10 नवंबर रात 8.00 बजे पर जाती है उसका दिल भर आता है। रीनू जैन की आंखों से आंसूओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। बेटे की तस्वीर हाथ में लेकर वो उस पर हाथ फेरती है, उसे सीने से लगाती हैं और यही कहती है मेरे बेटे ने क्या बिगाड़ा था, उसे क्यों मार दिया। घायल करके छोड़ देता तो भी मैं उसे यहां रख लेती।

आपको बता दे प्रियांशु के परिवार में सामाजिक तौर पर बहुत कुछ बदल चुका है। इस घर ने अपना इकलौता बेटा गंवाया है। जिससे परिवार का कोई आदमी आखिरी बार बात भी नहीं कर पाया। लेकिन इन माता, पिता के लिए वक्त 10 नवंबर रात 8 बजे पर ठहरा हुआ है जब उन्होंने अपने बेटे की हत्या की मनहूस खबर सुनी थी।

जब नेटवर्क 10 न्यूज़ की टीम मेरठ में प्रियांशु के घर पहुंची तो बेटे के गम में टूटी हुई एक बेबस मां ने अपने मन का दर्द साझा किया...
 
प्रियांशु की मां रोते हुए बस यही कहती हैं हम न्याय चाहते हैं। मेरा बच्चा वापस नहीं आ सकता, हम किसके सहारे जिएंगे, सभी पैरेंट्स मेरा दर्द समझ सकते हैं। सब आगे आएं और न्याय दिलाएं उसे, तभी तो समाज में ये मैसेज जाएगा कि एक मां का दर्द क्या होता है. अपराधी को कम से कम फांसी तो हो, हमारी ज़िंदगी कैसे कटेगी? हम तो अभी इस दर्द से उबर ही नहीं पाए हैं.. हम कुछ सोचने की हालत में नहीं है..इतना जालिम एक बच्चे के साथ कैसे हो सकता है.वो 24 साल का बच्चा था बच्चे को देखकर उसे जरा भी तरस नहीं आया, बस चाकू निकाला और मार दिया। उसे इतनी मुश्किल से बेटी के साढ़े सात साल बाद इतनी मन्नतों से वो हुआ था..हम अपनी दुनिया में इतने खुश थे उसने सारा तबाह कर दिया, बर्बाद कर दिया हमें। सारा घर उजाड़ दिया, हम कैसे जी पाएंगे समझ नहीं आता। मेरे बच्चे का कोई कुसूर भी नहीं था फिर भी मार दिया, वो बचे नहीं हम बस इतना चाहते हैं कि उसे सजा मिले। अभी मुझे ये भरोसा ही नहीं हो रहा मेरा बेटा अब कभी नहीं आएगे, हम उसके कमरे में उस दिन से गए ही नहीं, हम घर मे उसकी फोटो भी नहीं लगा पा रहे..उसके कपड़े, खिलौने उसकी किताबें उसकी हर चीज जो जहां जैसी थी वो वैसे ही रखी है। मैं समझ ही नहीं पा रही कि अब मेरा बच्चा कभी नहीं आएगा हम कैसे जिंदा रहेंगे। 

वही प्रियांशु की बहन गीतिका इस हादसे के बाद से लगातार अपने घर को संभाले हुए है। घर का बेटा बनकर गीतिका अपनी मां, पिता दोनों की देखभाल कर रही हैं। अपने आंसूओं को सब से छिपाकर वो अकेले में रोती है। कहती है भाई-बहनों में जो छोटी-मोटी नोंकझोंक होती है वो हमारे बीच भी होती थी। लेकिन वो कभी इन चीजों को बीच में नहीं लाता था। वो रिलेशनशिप को लेकर बहुत मैच्योर था। मेरे रोके से पहले हमारी हल्की सी लड़ाई हुई इसके बावजूद उसने सारी रस्में और जिम्मेदारी को निभाया। 

आंखों की नमी छिपाते हुए गीतिका कहती है हमारी रोजाना 3 से 4 बार फोन पर बात होती थी। हम हर बात शेयर करते थे। लास्ट दिन भी उसने मुझे सारी बातें बताई। पिछले 8 दिनों से उसका कोई मैसेज नहीं आया..न अब उसका मैसेज नहीं आता, न फोन आता है। उसकी आवाज़ सुनने को मैं तरस रही हूं। हम इंस्टग्राम पर मीम शेयर करते थे वो सब मिस्ड आउट हैं, सारी चीजें बहुत मिस होती हैं। काश जाने से पहले एक बार हम मिल पाते, हम आपस में बात भी नहीं कर पाए। हमारे दिल की तमाम बातें दिल में रह गईं, उसके मन में भी बहुत कुछ होगा जो वो हमसे कहना चाहता होगा, बताना चाहता होगा। वो भी आखिरी बार हमसे मिलना चाहता होगा लेकिन कुछ भी नहीं हो सका अब इसमें मैं क्या बोलूं।

गीतिका आगे कहती हैं अपने इकलौते भाई को मैंने हमेशा के लिए खो दिया मैं चाहती हूं ये केस फास्टट्रेक में जाए, प्रियांशु को जस्टिस मिले, उसे फांसी की सजा हो, अपराधी पुलिस में है तो उसके साथ कोई ढिलाई न बरती जाए। सजा में ज्यादा समय न लगाया जाए। लोग आगे आएं और इस कॉज़ से जुड़ें। मैं नहीं चाहती जिस तरह हम सफर कर रहे हैं, इस चीज को कोई और भी फील करे। ऐसा नहीं होना चाहिए कि वो पुलिस में है तो इन सब चीजों से बाहर निकल जाए। उसे नॉर्मल क्रिमिनल्स की तरह ट्रीट किया जाए।

जिसके बाद प्रियांशु के जीजाजी वर्तिक प्रियांशु यानि अपने यशु को याद करते हुए कहते हैं वो मेरे लिए यशु ही था। मेरे छोटे भाई की तरह था। हमारे बीच कभी जीजा, साले वाला रिश्ता नहीं रहा। हम बडीज और दोस्त थे। वो जब भी अहमदाबाद से मेरठ आता तो पहले गुड़गांव हमारे पास आकर 2 दिन रुकता फिर यहां मेरठ आता। करियर को लेकर वो बहुत क्लियर और फोकस था। उसे एमबीए करना है माइका में जाना है ये सब उसको क्लियर था वो कभी डाउट में नहीं रहा।

हम लोग डॉक्यूमेंट्री, मूवी, बुक्स, स्पोर्ट्स हर टॉपिक पर डिस्कस करते थे। 2021 में जब मेरी गीतिका की शादी हुई थी उसके छह महीने पहले हमारा रोका हुआ था तभी से हमारी बातें होती थी। उसको जस्टिस मिले हम यही चाहते हैं। 

आज जब माइका मैनेजमेंट की तरफ से प्रियांशु का सामान उसके घर भेज दिया गया,शुक्रवार को प्रियांशु के घर वो कोरियर पहुंचा। कोरियर में प्रियांशु के हॉस्टल रूम से उसका सारा सामान आया। उसके कपड़े, किताबें, बैग और जरूरत की हर चीज जो प्रियांशु की अब आखिरी निशानी है वो हर चीज उसके घर कोरियर से आई। लेकिन अब तक घरवालों ने उस सामान को खोलकर नहीं देखा है। उनकी हिम्मत नहीं हो रही कि वो उन कार्टंस को खोलकर अपने बेटे की आखिरी बची निशानियां जो उसकी चंद चीजें हैं उनको देखकर अपना दिल हल्का कर लें।

घर के फर्स्ट फ्लोर पर प्रियांशु का रूम है। जिसे हाल ही में तैयार कराया गया था। इस कमरे में प्रियांशु उसके जीजाजी रहते थे। पिछले 8 दिनों से इस कमरे का दरवाजा नहीं खुला। किसी ने कमरे में झांका नहीं है। परिजन कहते हैं उस कमरे में जाकर क्या करें? ऐसा लगता है कि कमरे मे सामने से मेरा बेटा मम्मी कहता हुआ आ जाएगा। इसलिए घर में किसी की हिम्मत नहीं हो रही कि वो कमरे में जाएं। बस प्रियांशु का हॉस्टल से आया सामान उसके जीजा ने इस कमरे में रखा है।