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अभियोजन की मंजूरी देते समय मंत्रिपरिषद की सलाह, सहायता के प्रति बाध्य हैं राज्यपाल: तेलंगाना

नयी दिल्ली, 10 सितंबर (भाषा) कांग्रेस शासित तेलंगाना सरकार ने बुधवार को कहा कि आमतौर पर राज्यपाल अभियोजन स्वीकृति प्रदान करने के मामले में भी मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह लेने के लिए बाध्य होते हैं, सिवाय उस स्थिति के जब कोई मंत्री या मुख्यमंत्री किसी आपराधिक मामले में शामिल हो।

भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ को तेलंगाना सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निरंजन रेड्डी ने बताया कि राष्ट्रपति को मामला भेजे जाने (प्रेसिडेंशियल रेफरेंस) पर जवाब देते समय उच्चतम न्यायालय को विधेयक पर राज्यपाल के ‘अंतर्निहित पूर्वाग्रह’ पर भी गौर करना होगा।

‘प्रेसिडेंशियल रेफरेंस’ पर सुनवाई के नौवें दिन रेड्डी ने तमिलनाडु के उदाहरण का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल ने राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति पद से राज्यपाल को हटाने के लिए विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर राज्यपाल के हस्तक्षेप का हवाला दिया था। उन्होंने कहा कि अदालत को इस पर गौर करना होगा।

पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर भी शामिल थे। पीठ को वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया कि अनुच्छेद 200 के तहत दूसरा प्रावधान वास्तव में इस बात का संकेत है कि सामान्यतः राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं होता और वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बाध्य होता है।

शीर्ष अदालत इस मामले में सुनवाई कर रही है कि क्या न्यायालय विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने के लिए राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा निर्धारित कर सकता है।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा