वाराणसी के हरिश्चंद्र घाट पर सोमवार को अद्भुत मसाने की होली खेली गई। इसमें नागा साधुओं के साथ आम लोगों ने भी भस्म की होली खेली, कहा जाता है कि इस मसाने की होली के वक्त महादेव खुद अपने अघोरियों के साथ होली खेलने आते हैं। इस होली उत्सव में दूर दूर से आए लोगों ने शिरकत की। यहां मसाने की होली चिता की राख से खेली गई।
काशी में ये प्राचीन परंपरा महादेव के भक्त सदियों से निभाते चले आ रहे हैं। मसाने की होली में चिता की राख का इस्तेमाल शुद्धिकरण और गहरी भक्ति का प्रतीक है साथ ही इसे मृत्यु से जुड़े भय को दूर करने के प्रतीक के रूप में माना जाता है।
मसाने की होली के मौके पर शहर में भव्य जुलूस भी निकाला गया। अस्सी, शिवाला भदैनी होते हुए भक्त हरिश्चंद्र घाट पहुंचे। इस जुलूस में उनके साथ नागा साधु और हजारों श्रद्धालुओं ने अनेक झांकियों का प्रदर्शन भी किया।
मसाने की होली वाराणसी की बेहद अनूठी परंपरा है। काशी विश्वनाथ की भक्ति में डूबकर चिता की राख से होली खेलना सामाजिक समरसता और अलमस्त फक्कड़ी का संदेश देती है, ये नज़ारा केवल और केवल काशी में ही दिखता है, जहां मरण है, मोक्ष है और इसी में जीवन है।