पुणे, 20 दिसंबर (भाषा) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य ''गठबंधन की राजनीति'' की तरह है, जहां निष्ठाएं लगातार बदलती रहती हैं। उन्होंने कहा कि भारत को ऐसे परिदृश्य में लचीला रुख अपनाते हुए अपने हितों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जयशंकर पुणे साहित्य महोत्सव में राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट के निदेशक युवराज मलिक के साथ 'कूटनीति से विमर्श' विषय पर बातचीत कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे देश में एक दौर गठबंधन की राजनीति का था। आज की दुनिया भी गठबंधन की राजनीति जैसी ही है। किसी के पास बहुमत नहीं है। किसी गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं है। इसलिए लगातार समीकरण बदलते रहते हैं, सौदे होते रहते हैं, कोई ऊपर जाता है तो कोई नीचे। यह पूरी तरह से बहुध्रुवीय दुनिया है, जहां कई साझेदार हैं।'
जयशंकर ने कहा कि इस अस्थिर स्थिति से निपटने के लिए उनका मंत्र भारत के हितों को ध्यान में रखते हुए फैसले लेना था।
उन्होंने कहा, 'हमें बहुत लचीला रुख अपनाना होगा। कभी-कभार आप किसी एक मुद्दे पर किसी के साथ होते हैं और किसी दूसरे मुद्दे पर किसी दूसरे के साथ। इन सबके बावजूद मेरा एक ही सिद्धांत है - जो मेरे देश के हित में हो। जो भी मेरे देश के हित में हो, वही मेरा फैसला होगा।'
इस साहित्य महोत्सव का आयोजन पुणे पुस्तक महोत्सव के साथ किया जा रहा है।
अपनी एक पुस्तक के उस अंश के बारे में पूछे जाने पर, जिसमें उन्होंने प्रमुख शक्तियों के साथ भारत के संबंधों पर चर्चा की है, जयशंकर ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में देश की विदेश नीति का प्रबंधन कहीं अधिक जटिल हो गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘किताब लिखते समय मैं इस बात पर विचार कर रहा था कि भारत की समग्र विदेश नीति का एक वाक्य में वर्णन करने के लिए किन शब्दों का चुनाव करूं।’’
उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेश में अमेरिका से संबंध बनाना, चीन का प्रबंधन करना और रूस को आश्वस्त करना, ये सभी चीजें अधिक जटिल हो गई हैं।
उन्होंने बताया कि यूक्रेन युद्ध और भारत पर मॉस्को से दूरी बनाए रखने के दबाव के कारण ‘रूस को आश्वस्त करना’ विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण हो गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘जापान को शामिल करना भी अधिक जटिल हो गया है। वे अपनी गति से चलते हैं और हम उन्हें तेज गति से चलने के लिए प्रेरित करने का प्रयास कर रहे हैं।’’
उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप भारत के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभरा है और उसके साथ अधिक जुड़ाव की आवश्यकता है।
भारत के पड़ोस के बारे में उन्होंने कहा कि नयी दिल्ली के अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंध उन देशों की विषमता और अस्थिर घरेलू राजनीति से प्रभावित होते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पड़ोसी देश हमसे छोटे हैं और भारत से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। उनकी आंतरिक राजनीति में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी वे हमारी प्रशंसा करते हैं, कभी हमारी आलोचना करते हैं। ऐसे में चुनौती यह है कि इन संबंधों को यथासंभव स्थिर कैसे रखा जाए।’’
उदाहरण देते हुए जयशंकर ने कहा कि हाल ही में श्रीलंका में आए चक्रवात पर भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और सबसे पहले मदद के लिए पहुंचा।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पड़ोसियों से पूछिए कि कोविड के दौरान उन्हें टीके कहां से मिले - भारत से। यूक्रेन युद्ध के दौरान जब पेट्रोल और उर्वरकों की आपूर्ति बाधित हुई, तो भारत ने मदद की।’’
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत को परिवार के मुखिया की तरह व्यवहार करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘एक-दो सदस्य भले ही नाराज हो जाएं, लेकिन पड़ोस की देखभाल करना हमारी ज़िम्मेदारी है।’’
प्रश्न-उत्तर सत्र के दौरान जब उनसे पूछा गया कि वैश्विक स्तर पर विभिन्न स्थितियों में भारत कैसे प्रतिक्रिया देता है, तो जयशंकर ने मजाकिया अंदाज में कहा कि वे इस प्रश्न को इस तरह से पूछेंगे कि, ‘‘आप कब चुप रहते हैं और कब बोलते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह वास्तव में परिस्थिति पर निर्भर करता है। आज के बहुध्रुवीय विश्व में यदि आप चुप रहेंगे, तो दुनिया आपको दबा देगी। उन्हें लगता है कि आपको दबाया जाए तो आप रक्षात्मक हो जाएंगे और हाशिए पर चले जाएंगे, इसलिए अपनी आवाज उठाना जरूरी है।’’
शिक्षा पूरी करने के बाद युवा भारतीय पेशेवरों के काम के लिए विदेश जाने के कारण कथित ‘प्रतिभा पलायन’ के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि उन्होंने ऐसे लोगों को भी देखा है ‘‘जो दो साल, तीन साल या पांच साल के लिए विदेश जाते हैं, लेकिन वापस आकर यहां व्यवसाय स्थापित कर लेते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘विश्व की सबसे बड़ी जहाजरानी कंपनी में अधिकांश कर्मचारी भारत से हैं।’’ उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय प्रतिभा की मांग है।
उन्होंने कहा, ‘‘रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान समझौते के समय, वे भारतीयों को रूस में आकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रति इच्छुक थे।’’
जयशंकर ने कहा, ‘‘भले ही यूरोप में प्रवासन को लेकर बहस चल रही हो, लेकिन भारतीयों को अच्छी नजर से देखा जाता है। भारतीयों को पारिवारिक और मेहनती माना जाता है। वे तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर के रूप में जाने जाते हैं। आज भारत का एक वैश्विक ब्रांड है। युवाओं को दुनिया को एक वैश्विक कार्यस्थल के रूप में देखना चाहिए।’’
भाषा संतोष माधव
माधव