अल्मोड़ा, उत्तराखंड राज्य में बसा एक सुंदर पहाड़ी शहर है। यह जगह अपने शांत वातावरण, पुराने मंदिरों और संस्कृति के लिए जानी जाती है। अल्मोड़ा में एक बहुत मशहूर बाजार है, जिसका नाम लाल बाजार है। लाल बाजार अल्मोड़ा का सबसे पुराना और बड़ा बाजार है। यह बाजार शहर के बीचों-बीच बसा हुआ है और यहां हमेशा चहल-पहल बनी रहती है। यहां रोजाना बहुत से लोग खरीदारी करने आते हैं। यह बाजार ब्रिटिश काल से भी पहले का है और यहां की पुरानी दुकानें और भवन आज भी उस दौर की झलक दिखाते हैं। ऐसा माना जाता है कि कभी यहां लाल पत्थर या लाल रंग की छतों वाली दुकानों की भरमार थी। इसलिए बाजार का नाम लाल बाजार पड़ा।
लाल बाजार का नाम सुनते ही एक पारंपरिक, भीड़-भाड़ वाला और जीवंत स्थान हमारे दिमाग में आता है। यह बाजार बहुत पुराने समय से अल्मोड़ा के लोगों की जरूरतों को पूरा करता आ रहा है। यहां पर कई पुरानी दुकानें हैं, जिनमें पीढ़ियों से लोग व्यापार कर रहे हैं। पत्थरों से बनी संकरी गलियां, लकड़ी के पुराने घर, और दुकानों के बाहर लटके रंग-बिरंगे बोर्ड इस बाजार को एक अलग ही पहचान देते हैं।
लाल बाजार में आपको रोजमर्रा की जरूरत की हर चीज मिल जाती है, जैसे:
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कपड़े
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जूते-चप्पल
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बर्तन
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खाने-पीने की चीजें
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हाथ से बनी चीजें
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पहाड़ी मिठाइयां, जैसे बाल मिठाई और सिंगौड़ी
लाल बाजार क्यों खास है?
लाल बाजार सिर्फ एक खरीदारी की जगह नहीं है, यह अल्मोड़ा की संस्कृति और परंपरा को भी दिखाता है। यहां की पुरानी दुकानें, लकड़ी के बने मकान और पत्थर की गलियां इस बाजार को खास बनाती हैं। नया देखने को मिलता है। जो लोग बाहर से घूमने आते हैं, वे लाल बाजार जरूर जाते हैं। यहां से लोग अल्मोड़ा की खास चीजें खरीदते हैं और यहां की मिठाइयों का स्वाद लेते हैं।
कुमाऊंनी लोकगीत “बेडु पाको बारो मासा” में लाल बाजार का जिक्र भी किया गया है। गीत में नायिका अपने पति नारायण से कहती है कि:
“अल्मोड़ा को लल्ल बाजार — नरैणा, पाथर की सीढ़ी मेरी छैला”
यह पंक्ति दर्शाती है कि कैसे लाल बाजार उसकी यादों और भावनाओं से जुड़ा है।
लाल बाजार अल्मोड़ा की आत्मा की तरह है। यह जगह पुराने समय की याद दिलाती है और आज भी लोगों की जरूरतों को पूरा करती है। लाल बाजार केवल एक खरीदारी की जगह नहीं है, यह अल्मोड़ा की परंपरा, इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है। यहां की गलियों में घूमते हुए लोग पुराने समय को महसूस कर सकते हैं।