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मथुरा के कारीगर होलिका की मूर्तियां बनाने में व्यस्त, छोटी होली पर पूजा के बाद अग्नि में जलाने की परंपरा

Uttar Pradesh: राम किशोर कस्बों, शहरों और राज्यों के नाम इतनी सहजता से बता देते हैं, जैसे कोई वेटर किसी रेस्तरां का मेन्यू बताता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा में किशोर और उनके जैसे कारीगर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाते रहे हैं। ये कला उन्हें अपने पूर्वजों से विरासत में मिली है। जैसे-जैसे होली का त्योहार करीब आता है, ये कारीगर होलिका और प्रह्लाद की मूर्तियां बनाने में व्यस्त हो जाते हैं। छोटी होली पर होलिका दहन में होलिका की मूर्ति को आग के हवाले किया जाता है।

ये कारीगर हर होली पर पूरी लगन के साथ इन खास मूर्तियों को बनाते दिखते हैं। वे इस परंपरा को पीढ़ियों से निभाते चले आ रहे हैं। होलिका दहन की कथा पाप पर धर्म की विजय का प्रतीक है। हिंदू पुराणों के मुताबिक हिरण्यकश्यप नाम का राक्षस राजा अपने बेटे प्रह्लाद को मारना चाहता था क्योंकि वो भगवान विष्णु का भक्त था। घमंडी और अहंकारी राजा चाहता था कि उसका बेटा उसकी पूजा करे। ऐसा करने के लिए उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली, जिसे वरदान मिला था कि आग उसे जला नहीं सकती।

होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर धधकती आग में बैठ गई। उसे उम्मीद थी कि प्रह्लाद मर जाएगा, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त को कोई नुकसान नहीं पहुंचने दिया।इसलिए होलिका जल गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित बच गये। मान्यता है कि तब से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर सदियों से हर साल होलिका दहन किया जाता है। होली का त्योहार इस साल 14 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन एक दिन पहले यानी 13 मार्च को होगा।