प्रयागराज में पिछली 13 जनवरी को शुरू हुए आस्था के सबसे बड़े संगम महाकुंभ के अंतिम दिन महाशिवरात्रि पर देश के विभिन्न भागों से तीर्थयात्री पवित्र संगम स्थल पर डुबकी लगाने के लिए एकत्र हुए और झांझ की झंकार, पवित्र मंत्र और भारत के विविध रूप दिखाने वाले रंग त्रिवेणी संगम पर एक दूसरे में घुल-मिल गए।
प्रयागराज में महाकुंभ पिछली 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को शुरू हुआ था और इसमें नागा साधुओं के भव्य जुलूस और तीन ‘अमृत स्नान’ हुए। इस विशाल धार्मिक समागम में अब तक रिकॉर्ड 64 करोड़ से अधिक तीर्थयात्री शामिल हुए हैं। महाकुंभ के अंतिम शुभ स्नान की वजह से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आधी रात के करीब संगम के तट पर एकत्र होने लगे थे। उनमें से अनेक लोग ‘ब्रह्म मुहूर्त’ में डुबकी लगाने के लिए धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा कर रहे थे, जबकि उनमें से कई ने नियत समय से बहुत पहले ही स्नान अनुष्ठान कर लिया था। उनमें पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के रहने वाले चार दोस्त भी थे, जिन्होंने स्नान अनुष्ठान के लिए घाट पर जाने से पहले चमकीले पीले रंग की धोती पहनी थी।
पश्चिम बंगाल के तीर्थयात्री दुर्गापुर और कूच बिहार जैसे स्थानों से भी आए थे साथ ही, ‘जय गंगा मैया’, ‘हर हर महादेव’, ‘सीता राम’ के जयकारे हवा में गूंज रहे थे। साथ ही कई भक्तों द्वारा बजाए जा रहे झांझ की मधुर झंकार भी गूंज रही थी। दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक समागम के रूप में स्थापित हो चुके इस विशाल धार्मिक उत्सव ने अपने अंतिम दिन न केवल देश के चारों कोनों से बल्कि पड़ोसी नेपाल से भी तीर्थयात्रियों को आकर्षित किया।
नेपाल के चार किशोरों ने तीन अन्य सदस्यों के साथ महाशिवरात्रि मनाने के लिए पवित्र डुबकी लगाई। मनीष मंडल, रब्बज मंडल, अर्जुन मंडल और दीपक साहनी और उनके चाचा डोमी साहनी ने भगवान शिव नाम वाली अंगरखी पहनी थी। साहनी ने बताया कि “हम नेपाल के जनकपुर से हैं, जो माता सीता से जुड़ा स्थान है। हमारा शहर जानकी मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है, महाकुंभ में पवित्र स्नान के बाद हम भगवान राम के दर्शन के लिए अयोध्या जाएंगे।” नेपाल से आए समूह के सदस्य पहले अपने गृह नगर से जयनगर गए और फिर ट्रेन से प्रयागराज पहुंचे।
साहनी ने कहा कि “अयोध्या से हम वापस जयनगर जाएंगे और फिर कुंभ और अयोध्या दोनों देखने के बाद जनकपुर जाएंगे।” कई तीर्थयात्रियों ने यह भी कहा कि वे “144 फैक्टर” के कारण इस कुंभ मेले में आए हैं। कुछ लोगों का दावा है कि यह विशाल धार्मिक उत्सव किसी दुर्लभ ग्रह के संरेखण के समय हो रहा है और ऐसा अवसर 144 साल बाद आता है।
महाशिवरात्रि पर पवित्र डुबकी लगाने के लिए कर्नाटक, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश से भी तीर्थयात्री आए हैं। संगम स्थल पर या उसके आस-पास के विभिन्न घाटों पर तीर्थयात्रियों के आने और पवित्र स्नान करने के दौरान सुरक्षा कर्मियों ने सतर्क नजर रखी और किसी भी स्थान पर लंबे समय तक भीड़ नहीं लगने दी। महाकुंभ मेला क्षेत्र में विशाल प्रवेश द्वार बनाए गए हैं, जैसे नंदी द्वार और संगम प्रिय।
संगम स्थल के पास संगम द्वार के शीर्ष पर माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरस्वती की एक-एक तस्वीर अंकित है। संगम की ओर जाते समय कई तीर्थयात्री इस प्रवेश द्वार के साथ एक तस्वीर लेने के लिए कुछ समय के लिए रुके। कई भक्त भगवा वस्त्र पहनकर मेले में आए, जबकि कई अन्य भगवान शिव का नाम लेते हुए और हवा में हाथ उठाते हुए आए।
महाशिवरात्रि भगवान शिव और देवी पार्वती के दिव्य मिलन का स्मरण कराती है और कुंभ मेले के संदर्भ में विशेष महत्व रखती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने समुद्र मंथन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके कारण अमृत कुंभ (अमृत से भरा घड़ा) का उद्भव हुआ।
यह कुंभ मेले का सार है, ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने पिया था और अपने कंठ में उसे रोक लिया था जिसकी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार संगम और मेला क्षेत्र के अन्य घाटों पर कुल 1.33 करोड़ श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई। इसके साथ ही प्रयागराज महाकुंभ में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की कुल संख्या संख्या 64 करोड़ से अधिक हो गई है।