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जानें नवरात्रि कन्या पूजन से जुड़ी पौराणिक कथा

मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि पर्व साल में चार बार मनाया जाता है, जिसका अपना-अपना महत्व और मान्यता है। शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में व्रत रखने के साथ-साथ मां दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, शारदीय नवरात्रि हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शुरू होती है, जो 9 दिन बाद नवमी तिथि को समाप्त होती है। इस साल शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू हो गई है, जो 11 अक्टूबर को कन्या पूजन के बाद समाप्त होगी। शारदीय नवरात्रि में अष्टमी और नवमी तिथि की पूजा करने से साधक को विशेष फल की प्राप्ति होती है। जहां कुछ लोग अष्टमी तिथि को कन्या पूजन करने के बाद नवरात्रि व्रत का समापन करते हैं, वहीं कुछ लोग नवमी तिथि को व्रत तोड़ते हैं।

चैत्र नवरात्रि हो या शारदीय दोनों में ही कन्या पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्रि के दौरान, व्रत रखने वाले भक्त अष्टमी या नवमी तिथि को कन्या पूजन करते हैं और कन्याओं को भोजन करवाते हैं। कन्या पूजन की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है

नवरात्रि कन्या पूजन से जुड़ी पौराणिक कथा 

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार, इंद्र देव ने ब्रह्मा के कहने पर कन्या पूजन किया था। दरअसल, इंद्रदेव देवी मां को प्रसन्न करना चाहते थे। अपनी इच्छा को लेकर इंद्रदेव ब्रह्मा के पास पहुंचे और उन्हें माता दुर्गा को प्रसन्न करने का उपाय पूछा। ब्रह्मा ने इंद्रदेव से कहा कि, देवी माता को प्रसन्न करने के लिए आपको कन्याओं का पूजन करना चाहिए और उन्हें भोजन कराना चाहिए। ब्रहाा की सलाह के बाद इंद्रदेव ने माता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद कुंवारी कन्याओं का पूजन किया और उन्हें भोजन करवाया। इंद्रदेव के सेवा भाव को देखकर माता प्रसन्न हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि, तभी से कन्या पूजन की परंपरा शुरू हुई।