Andhra pradesh: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के बीच साझेदारी के तहत बुधवार को जीएसएलवी रॉकेट से ‘निसार’ उपग्रह को कक्षा में स्थापित कर दिया गया। ‘निसार’ पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। इसरो के जीएसएलवी एफ-16 ने लगभग 19 मिनट की उड़ान के बाद और लगभग 745 किलोमीटर की दूरी पर निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) उपग्रह को सूर्य तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा (एसएसपीओ) में स्थापित कर दिया।
इसरो ने कहा, ‘‘जीएसएलवी ने निसार को निर्धारित कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया।’’ बुधवार की यह उपलब्धि 18 मई को पीएसएलवी-सी61/ईओएस-09 मिशन की असफलता के बाद आई है, जिसमें इसरो का पीएसएलवी त्रुटि के चलते पृथ्वी अवलोकन उपग्रह को वांछित कक्षा में पहुंचाने में विफल रहा था। इसी प्रकार के उपग्रहों- रिसोर्ससैट और रीसैट श्रृंखला, जो परिचालनात्मक रूप से भारत पर केंद्रित थे, को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करने के बाद, इसरो ‘निसार’ मिशन के माध्यम से पृथ्वी ग्रह के अध्ययन की यात्रा पर निकल पड़ा है।
जीएसएलवी-एस16 रॉकेट की लंबाई 51.7 मीटर है। जीएसएलवी एफ-16 रॉकेट ने 27.30 घंटे की उलटी गिनती के बाद 2,393 किलोग्राम वजनी उपग्रह को लेकर उड़ान भरी। चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर पूर्व में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे प्रक्षेपण स्थल से प्रक्षेपण यान ने उड़ान भरी। रॉकेट से अलग होने के बाद, वैज्ञानिक उपग्रह को संचालित करने का काम शुरू करेंगे, जिसमें उसे स्थापित करने और मिशन के उद्देश्यों को पूरा करने में ‘‘कई दिन’’ लगेंगे। इसरो के अनुसार, एस-बैंड रडार प्रणाली, डेटा हैंडलिंग और हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण प्रणाली भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा विकसित की गई हैं।
एल-बैंड रडार प्रणाली, हाई-स्पीड डाउनलिंक प्रणाली, सॉलिड स्टेट रिकॉर्डर, जीपीएस रिसीवर, 9 मीटर बूम होइस्टिंग और 12 मीटर रिफ्लेक्टर, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा प्रदान किए गए हैं। इसरो ने कहा, ‘‘इसके अलावा, इसरो उपग्रह की कमान और संचालन के लिए जिम्मेदार है। नासा कक्षा संचालन योजना और रडार संचालन योजना प्रदान करेगा। निसार मिशन को प्राप्त तस्वीरों को डाउनलोड करने के लिए इसरो और नासा दोनों के जमीनी केंद्र से सहायता मिलेगी, जिन्हें आवश्यक प्रसंस्करण के बाद उपयोगकर्ता तक प्रसारित किया जाएगा।’’
इस दौरान एक ही प्लेटफॉर्म से एस-बैंड और एल-बैंडआर के माध्यम से प्राप्त डेटा से वैज्ञानिकों को पृथ्वी पर हो रहे परिवर्तनों को समझने में मदद मिलेगी। मिशन का उद्देश्य अमेरिका और भारत के वैज्ञानिक समुदायों के साझा हित के क्षेत्रों में भूमि और हिमनद की गतिविधियों, भूमि पारिस्थितिकी तंत्र और महासागरीय क्षेत्रों का अध्ययन करना है। ‘निसार’ का मिशन जीवनकाल पांच वर्ष है। नासा ने कहा कि ‘निसार’ मिशन से प्राप्त डेटा सरकारों और निर्णयकर्ताओं को प्राकृतिक और मानव-जनित खतरों के लिए योजना बनाने में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा।
‘निसार’ खतरों की निगरानी के प्रयासों में मदद कर सकता है और संभावित रूप से निर्णयकर्ताओं को संभावित आपदा के लिए तैयारी करने के लिए अधिक समय दे सकता है। रडार उपग्रह धरती की भूमि और बर्फ का 3डी दृश्य उपलब्ध कराएगा। उपग्रह डेटा उपयोगकर्ताओं को भूकंप और भूस्खलन संभावित क्षेत्रों पर लगातार नजर रखने और यह निर्धारित करने में सक्षम बनाएगा कि हिमनद कितनी तेजी से पिघल रही हैं।
उपग्रह से हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में वनों में होने वाले बदलाव, पर्वतों की स्थिति या स्थान में बदलाव और हिमनद की गतिविधियों सहित मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकेगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘निसार’, नासा या इसरो द्वारा प्रक्षेपित अब तक की सबसे उन्नत रडार प्रणाली है और यह उनके द्वारा प्रक्षेपित किसी भी पूर्व पृथ्वी उपग्रह की तुलना में दैनिक आधार पर अधिक डेटा प्रदान करेगी।
मिशन दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों को दुनिया भर के पारिस्थितिकी तंत्रों की निगरानी करने में मदद करेगा और एल बैंड वन से वन संरचना के बारे में, जबकि एस-बैंड रडार से फसलों की निगरानी हो सकेगी। निसार के डेटा से शोधकर्ताओं को यह आकलन करने में मदद मिलेगी कि समय के साथ वन, आर्द्रभूमि, कृषि क्षेत्र किस प्रकार बदलते हैं।