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उत्तराखंड: सीमाओं के पार मालुशाही-राजुला के प्रेम की एक अमिट कहानी

एक समय की बात है उत्तराखंड के बागेश्रवर के राजा दोला शाह और चखोटिया के राजा सुनपत शौका दोनों राजाओं की मुलाकात हुई. दोनों राजाओं ने मिलकर तय किया कि, अगर उन दोनों को पुत्र-पुत्री प्राप्ति हुई तो वो उन दोनों का विवाह कराऐंगे. कुछ समय बाद राजा दोला शाह के घर पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम मालुशाही रखा गया. और सुनपत शौका के घर पुत्री के रूप में राजुला पैदा हुई.

कुछ समय बाद मालुशाही को पता चला कि उसका विवाह सुनपत शौका की दुलारी राजुला से होगा. फिर एक रात मालुशाही को सपने में राजुला दिखी। उन्होंने देखा कि उनका विवाह राजुला से हो गया हैं और यहीं सपना राजुला को भी आया. 

इसके कुछ समय बाद राजुला के घर हुण देश का राजा रिक्खीपाल आया और उसने धमकी दी की मैं राजुला से विवाह करुंगा. अगर मेरा विवाह राजुला से नहीं हुआ तो मैं पूरे शहर को तहस-नहस कर दूंगा. इस बात से राजुला बड़ी चिंत्तित हो गई और उसने कफू पक्षी के माध्यम से अपनी चिट्ठी मालुशाही तक पहुचाई. मालुशाही ने पुरी चिठ्ठी पढ़ी और उसने अपनी मां से कहा उसे शौका देश जाकर राजुला से विवाह करना हैं. यह सुनकर उसकी मां ने मना कर दिया। ऐसा सुनते ही मालुशाही ने खाना-पीना त्याग दिया और राज महल की सभी रानियों से बातचीत बंद कर दी। मालुशाही की जिद पर अड़े रहने के कारण उसकी मां बहुत चिंतित हुई उसने उसे बारह वर्षीय जड़ी बूटियां सूंघा दी, जिसके कारण मालुशाही बेहोश हो गया। 

उधर राजुला उस रात चुपचाप एक हीरे की अंगूठी लेकर बैराठ की ओर चल पड़ी. पहाड़ियों को लांघकर मून्शयारी होते हुए बागेश्रवर पहुंची। मालुशाही को होश आते ही वो वहां से बागेश्रवर की और निकल गया. दोनों बागनाथ मंदिर की नदी पार कर एक पड़े के पास जोगी-जोगन का रुप धारण कर विवाह कर लेते हैं। और यहीं उनकी प्रेम कहानी पूर्ण हो जाती हैं।