ठाणे, 30 सितंबर (भाषा) ठाणे जिले की एक अदालत ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में पर्याप्त समन्वय के अभाव का हवाला देते हुए, 2018 में एक आदिवासी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोपी एक व्यवसायी को बरी कर दिया है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए एस भागवत ने 26 सितंबर के अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा।
आदेश की एक प्रति मंगलवार को उपलब्ध कराई गई।
महाराष्ट्र के ठाणे शहर के व्यवसायी जयेश रमेश भोईर (39) पर 28 जनवरी 2018 को यहां भूमि स्वामित्व को लेकर हुए विवाद के दौरान वारली आदिवासी समुदाय के सदस्य राजू बुधिया तुम्बाडा को गाली देने और धमकी देने का आरोप लगाया गया था।
इस मामले में शिकायतकर्ता तुम्बाडा ने आरोप लगाया कि भोईर ने एक मजदूर की मदद से सीमेंट के खंभे लगाकर उनकी कृषि भूमि पर अतिक्रमण करने का प्रयास किया।
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत कासरवडवाली पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी के अनुसार, जब शिकायतकर्ता और उसकी पत्नी ने विरोध किया तो भोईर ने कथित तौर पर जातिसूचक शब्द कहे।
अभियोजन पक्ष ने शिकायतकर्ता, उसकी पत्नी, दो पंचों, प्रत्यक्षदर्शियों और जांच अधिकारियों सहित नौ गवाहों से पूछताछ की। जाति प्रमाणपत्र, दीवानी वाद और पंचनामा जैसे कई दस्तावेजी साक्ष्य भी अभिलेख में प्रस्तुत किए गए।
न्यायाधीश भागवत ने साक्ष्यों की समीक्षा के बाद अभियोजन पक्ष के मामले में कई कमियों और विरोधाभासों की ओर इशारा किया।
अदालत ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष के गवाह ने कथित घटना के दो दिन बाद शिकायत दर्ज कराई थी। दो दिन की देरी का कारण प्राथमिकी या किसी अन्य दस्तावेज़ में नहीं बताया गया है। इसलिए, स्थापित कानूनी स्थिति के अनुसार, प्राथमिकी को संदिग्ध दृष्टि से देखा जाना चाहिए।’’
साथ ही अदालत ने कहा ‘‘अभियोजन पक्ष के गवाह ने घटना की तारीख से पहले से ही भूमि विवाद को लेकर अभियुक्तों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों की बात स्वीकार की है। गवाह ने यह भी स्वीकार किया है कि उक्त भूमि विवाद को लेकर दीवानी अदालत में कई मुकदमे लंबित हैं। इसलिए, गवाह द्वारा अभियुक्तों को झूठे आरोप में फंसाने की स्पष्ट संभावना है।’’
अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाह के साक्ष्य की कोई ठोस पुष्टि नहीं हुई है।
अदालत ने कहा कि स्वतंत्र चश्मदीद गवाहों ने अभियोजन पक्ष के मामले का बिल्कुल भी समर्थन नहीं किया है और अपने बयानों से पलट गए हैं।
अदालत ने आरोपी को बरी करते हुए कहा कि मामले की जांच ‘‘त्रुटिपूर्ण है और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।’’
भाषा मनीषा शोभना
शोभना