हमारा प्यार उत्तराखंड! देवभूमि उत्तराखंड देवी देवताओं की भूमि है, पहाड़ियों के लिए ये कुल देवता और ग्राम देवता की भी भूमि है। उत्तराखंड की ये भूमि कुमाऊं और गढ़वाल की भव्य संस्कृति का एक अनोखा संगम है। उत्तराखंड में भगवान वास करते है। यहां की संस्कृति केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी काफी पसंद की जाती है। गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों में प्रचलित पूजा पद्धतियों भी कोई चमत्कार से कम नहीं है। गांव में आमा-बुबू बच्चों को अनेकों लोक गाथा सुनते है। उत्तराखंड को लोक गाथा सच्ची घटना पर आधारित होती है।
उत्तराखंड की प्रचलित पूजा पद्धतियों में से एक है जागर। कई लोगों के मन में ये सवाल आता है की उत्तराखंड में जागर का क्या मतलब होता है। वही कई लोग जगरी और डंगरी के बीच में कन्फ्यूज़ रहते है। आज हम उत्तराखंड की इसी पूजा पद्धतियों के बारे में आपको बताएंगे।
जागर का मतलब होता है जगाना, जब हम अपने लोक देवताओं को जगाते है। इस प्रक्रिया को जागर कहा जाता है। जागर उतराखंड की एक विशेष पूजा अर्चना है जिसमें कुल देवता या स्थानीय देवता जैसे गोल्ज्यू, सैम, भूमिया, लाटू आदि को मनुष्य के शरीर में बुलाया जाता है देवता हर किसी के शरीर में प्रवेश नहीं करते, जिस व्यक्ति के शरीर में वो आते है, उसे डंगरी या डंगरिया कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार जागर के जरिए कुल या ग्राम देवता किसी मुनष्य के शरीर के अंदर प्रवेश करते है और व्यक्ति के परिवार, गांव के समुदायों के कष्ट, परेशानियों का कारण खुद बता देते हैं। यही नहीं, वो कारण बताने के साथ-साथ निवारण भी बताते हैं। जिस व्यक्ति के अंदर कुल देवता प्रवेश करते है उस व्यक्ति में एक अलग ही तरह की पावर भी आ जती है। देवता के आगमन के बाद डंगरिया का हाव-भाव, बोलचाल का ढंग सामान्य नहीं रहता।
जागर में ढोल-दमाऊ, डौंर-थाली, थाली और हुड़का जैसे यंत्रों का प्रयोग किया जाता है इनसे विशेष धुन बजाई जाती है साथ-साथ देवगाथा भी गाई जाती है। देवगाथा में बताया जाता है कि देवता की उत्पत्ति कैसे हुई और उन्होंने क्या-क्या चमत्कारों किए हैं। जो लोग ढोल-दमाऊ यंत्रों को बजाकर देवता को बुलाते है उन्हे जगरी कहा जाता है।
ऐसी ही कई अविश्वसनीय चीजों से उत्तराखंड घिरा हुआ है।