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उत्तराखंड में आपदा को लेकर मंथन, लोग नहीं सुधरे तो भयानक होंगे परिणाम

उत्तराखंड में हर साल आपदा के हालात पैदा होते हैं। बादल फटना, भूस्खलन, तेज बरसात आदि वजहों से लोगों का जीवन संकट में आने के साथ ही जनजीवन भी प्रभावित होता है। ऐसी ही आपदा से बचाव को लेकर हिमालयन सोसायटी आफ जियो साइंटिस्ट ने सोमवार को कार्यशाला आयोजित कर कई सुझाव रखे।

कार्यशाला में अलग-अलग इंजीनियरिंग विभागों के अधिकारियों के अलावा विशेषज्ञ भी पहुंचे थे। एनएचपीसी (जियोटेक) के पूर्व चीफ व सोसायटी के उपाध्यक्ष बीडी पाटनी ने कहा कि पहाड़ पर कई शहर भूस्खलन के केंद्रों में बसे हुए हैं। नदियों के किनारे भी नहीं छोड़े। इस आबादी को बढ़ने से रोकना होगा।

इस दौरान हिमालयन सोसायटी आफ जियो साइंटिस्ट के अध्यक्ष आरएस घरखाल, गोदावरी रिवर मैनेजमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन एचके साहू, पूर्व चीफ विज्ञानी डा. शांतनु सरकार, डीआरडीओ के पूर्व विज्ञानी आरके वर्मा, आइआइटी रुड़की के एसोसिएट प्रोफेसर डा. एसपी प्रधान, सोसायटी के संस्थापक सदस्य नवीन हरबोला समेत अन्य मौजूद थे।

बीडी पाटनी का कहना है कि मैदानी क्षेत्र का बढ़ता तापमान पर्वतीय क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की मुख्य वजह है। हिमालय अभी बच्चा पहाड़ है। वह लगातार ऐसी घटनाएं सह नहीं सकेगा। इसलिए हमें औद्योगिक समेत अन्य गतिविधियों पर निगरानी की जरूरत है।