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भारत का सूर्य मिशन आदित्य-L1 दो सितंबर को होगा लॉन्च, चांद के बाद अब सूरज की तरफ

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद ISRO अब 2 सितंबर 2023 को आदित्य एल1 (Aditya-L1) मिशन को लॉन्च करने जा रहा है. सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल-1 मिशन सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च किया जाएगा. आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष भारतीय वेधशाला होगी. 

सूर्य का अध्ययन करने के मिशन आदित्य एल1 के प्रक्षेपण के बारे में इसरो प्रमुख ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा है और संभवत: इसे सितंबर के पहले सप्ताह में प्रक्षेपित किया जाएगा।

सोमनाथ ने कहा, सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य एल-1 का मिशन जल्द ही लॉन्च किया जाएगा। हम इसे सितंबर के पहले सप्ताह में लॉन्च करने की योजना बना रहे हैं। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा है। यह प्रक्षेपण अंडाकार कक्षा में जाएगा और वहां से यह एल1 बिंदु तक जाएगा जिसमें करीब 120 दिन लगेंगे। 

इससे पहले 14 अगस्त को इसरो ने सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष आधारित भारतीय वेधशाला मिशन आदित्य-एल1 के बारे में जानकारी दी थी और कहा था कि वह प्रक्षेपण के लिए तैयार हो रहा है।

पीएसएलवी-सी57/आदित्य-एल1 मिशन
सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष आधारित भारतीय वेधशाला आदित्य-एल1 प्रक्षेपण के लिए तैयार हो रही है। बेंगलुरु के यू आर राव उपग्रह केंद्र (यूआरएससी) में प्रक्षेपित उपग्रह श्रीहरिकोटा के एसडीएससी-एसएचएआर पहुंच गया है।
 
इस बीच, भारत ने बुधवार को इतिहास रच दिया जब चंद्रयान -3 लैंडर मॉड्यूल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतरा, जिससे यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने वाला पहला देश बन गया और चार साल पहले चंद्रयान -2 की क्रैश लैंडिंग पर निराशा खत्म हो गई। इसरो के मुख्यालय में अधिकारियों ने उस समय तालियां बजाईं जब विक्रम ने अपनी लैंडिंग साइट की ओर बढ़ना शुरू किया।
 
इसके साथ ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्व उतरने वाला भारत चौथा देश बन गया है। इससे पहले अमेरिका, चीन और रूस चंद्रमा पर उतर चुके हैं। अंतरिक्ष यान को 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। पांच अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में स्थापित किए गए अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण के लिए जीएसएलवी मार्क 3 (एलवीएम 3) भारी-भरकम प्रक्षेपण यान का इस्तेमाल किया गया था और तब से इसे कई कक्षीय प्रक्रियाओं के माध्यम से चंद्रमा की सतह के करीब उतारा गया था।