सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मणिपुर के मुर्दाघरों में पड़े शवों को दफनाने या दाह संस्कार सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए, जहां मई में जातीय हिंसा में कई लोगों की जान चली गई थी। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि शीर्ष अदालत की तरफ से नियुक्त जस्टिस (सेवानिवृत्त) गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली हाइकोर्ट के जजों की बेंच ने अपनी रिपोर्ट में पूर्वोत्तर राज्य के मुर्दाघरों में पड़े शवों को दफनाने वाली जगहों का संकेत दिया था।
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 175 शवों में से 169 की पहचान कर ली गई है, जबकि छह शवों की पहचान नहीं हो पाई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया कि पहचाने गए 169 शवों में से 81 पर उनके परिजनों ने दावा किया है जबकि 88 पर दावा नहीं किया गया।
बेंच के मुताबिक राज्य सरकार ने प्रदेश में नौ जगहों की पहचान की है जहां दफन या दाह संस्कार किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के पास कई याचिकाएं हैं, जिनमें राहत और पुनर्वास के उपायों के अलावा हिंसा के मामलों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान, पीठ ने निर्देश दिया कि परिवार के सदस्यों की तरफ से शवों की पहचान करने के बाद, बिना किसी विवाद के इन चिन्हित नौ जगहों में से किसी भी जगह पर उनका अंतिम संस्कार किया जा सकता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्य अधिकारी मृतकों के परिजनों को उन जगहों की जानकारी देंगे जहां उन शवों का दाह संस्कार किया जाना है। कोर्ट के मुताबिक ये काम चार दिसंबर या उससे पहले किया जाना चाहिए।