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हिमाचल हाईकोर्ट ने हेरिटेज टाउन हॉल भवन में फूड कोर्ट के संचालन पर लगाई रोक

 

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शिमला के प्रतिष्ठित टाउन हॉल में फूड कोर्ट के संचालन पर रोक लगा दी, कोर्ट ने कहा कि विरासत में मिली चीजें हमेशा अनमोल होती हैं।ऐसे में प्रतिष्ठित इमारत में फूट कोर्ट चलाने से इसकी विरासत के लिए खतरा पैदा हो सकता है।

वकील अभिमन्यु राठौड़ की तरफ से दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर अंतरिम आदेश पारित करते हुए, मुख्य न्यायाधीश एम. एस. रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने शिमला नगर निगम (एसएमसी) को आदेशों का तत्काल पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी, पीठ ने कहा कि अगर फूड कोर्ट चलाने की इजाजत दी जाती है तो विरासत में मिली संपत्ति को नुकसान पहुंचेगा। 

जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि फूड कोर्ट टाउन हॉल भवन में चलाया जा रहा है, जो 1860 में निर्मित और 1910-11 और 2014-18 में पुनर्निर्मित ऐतिहासिक महत्व वाली विरासत संरचना है, जो हाई कोर्ट के पहले के आदेशों का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि होई कोर्ट ने छह सितंबर, 2019 के अपने फैसले में केवल मेयर और डिप्टी मेयर के कार्यालयों को टाउन हॉल से काम करने की इजाजत दी थी। बाकी बचे इलाके को एक सूचना केंद्र और पारंपरिक कला और शिल्प का प्रदर्शन करने वाले बुटीक के साथ एक कैफे के रूप में इस्तेमाल करने को कहा गया था ताकि निगम के लिए कुछ राजस्व पौदा हो सके।

पीठ ने कहा कि एसएमसी ने निर्देशों का अनुपालन किया और टाउन हॉल के भूतल में एक कैफे बनाने का फैसला लिया। लेकिन निविदा नोटिस, आरएफपी दस्तावेज और रियायती समझौते से ये स्पष्ट होता है कि इनमें से कोई भी दस्तावेज इमारत में फूड कोर्ट चलाने का सुझाव नहीं देता है, अदालत ने बताया कि हाई-एंड कैफे बनाने का जिक्र आरएफपी दस्तावेज के साथ-साथ रियायत समझौते में भी किया गया था।

अदालत ने कहा, "इस तथ्य के बावजूद कि हमने मामले की दो दिनों तक सुनवाई की, सुनवाई के दौरान सामने आए कई सवालों का राज्य, शिमला नगर निगम या एचपी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट बोर्ड ने जवाब नहीं दिया।" अदालत ने राज्य विरासत सलाहकार समिति को सभी पहलुओं पर गौर करने और सुनवाई की अगली तारीख तक एक रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

"अदालत ने हमारी याचिका ये कहते हुए खारिज कर दी कि ये कोई हाई-एंड कैफे नहीं है। ये एक फूड कोर्ट है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हाई-एंड कैफे का मतलब हाई-एंड बिजनेस है। माननीय अदालत के अनुसार, महंगे पर्यटकों और कॉरपोरेट्स को इसमें प्रवेश करना चाहिए। वो कैफे जो हमारे अनुसार कभी भी जनहित में नहीं था। हाई कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख तक फूड कोर्ट पर रोक लगा दी है।''