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23 साल का हुआ छत्तीसगढ, आदिवासियों ने संजोई राज्य की परंपरा

Written By- वेद विलास उनियाल 

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ का आज स्थापना दिवस है। एक नबंवर 2000 को इस राज्य की स्थापना हुई थी। मध्यप्रदेश से अलग होकर बने इस राज्य ने 23 साल का सफर पूरा कर लिया है। छत्तीसगढ अपनी लोकसंस्कृति के लिए जाना जाता है। महानदी गोदावरी और नर्मदा नदियां इस राज्य की खुशहाली में सहायक बनी है। मेले तीज त्यौहार उत्सवों के लिए जाना गया यह राज्य खनिज संपदा की प्रचुरता के साथ है। छत्तीसगढ के अपने अलग रंग है। किसी भी मेले उत्सव में जाइए छत्तीसगढ के शिल्पी कलाकार अपने राज्य की कलात्मकता का अनूठा परिचय देते हुए नजर आते हैं। छत्तीसगढ़ की बोली प्रभावित करती है। छत्तीसगढी जीवन अपने कई रंगों के साथ है। छत्तीसगढ ने आज अपना 23 साल का सफर पूरा कर लिया है। और इस दौर में राज्य ने तेजी से अपना विकास किया। 

मध्यप्रदेश से अलग कर बनाए गए छत्तीसगढ राज्य की अपनी अनूठी संस्कृति है अपना एक मिजाज है। यहां की बोली मन को भाती है। एक नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर 26वें राज्य के तौर पर यह राज्य अस्तित्व में आया। मध्यप्रदेश के दक्षिण पूर्व के हिस्से को लग कर यह राज्य स्थापित किया गया। देश का यह नौवां बडा राज्य है। मध्यप्रदेश के इस क्षेत्र में किसी समय 36 गढ़ थे। उसे ही आधार बनाकर इस राज्य को छत्तीसगढ नाम दिया गया। प्राचीन समय में यह क्षेत्र दक्षिण कौशल नाम से जाना जाता था। इतिहासकारों का मानना है कि कलचुरी काल में ये क्षेत्र 36 गढ़ों में बंटे थे। हालांकि ये 36 किले के रूप में न होकर शासकीय इकाई के तौर पर थे। प्राचीन भारत के तौर पर देखें तो यहां मौर्य, सातवाहन, गुप्त, राजर्षितुल्य कुल,  सोमवंशी, नलवंशी, कलचुरी वंशों का शासन रहा। मराठा शासन के दौरान ही इस क्षेत्र को छत्तीसगढ पुकारा गया। 

छत्तीसगढ राज्य में वैष्णव शैव शाक्त बौद्ध संस्कृतियों का प्रभाव रहा है। जब छत्तीसगढ का निर्माण किया गया तो इसमें 16 जिले शामिल किए गए थे। आज पांच संभागों में 33 जिले समाहित है। एक मई 2007 को दो नए जिले बनाए गए थे इसके पांच साल बाद राज्य में फिर 9 जिले बनाए गए। इनमें अमरकंटक की तलहटी अचानकमार की इलाकों के बीच गोरेला पेंड्रा मरवही 28वां जिला बना था। जहां आठ नदियों का उद्गम बताया जाता है। 2022 में पांच नए जिलों के साथ राज्य में जिलों की संख्या 33 तक पहुंच गई। खेरागढ छुईखदान नए जिले के तौर सामने आया। राज्य बनने के समय छत्तीसगढ में विलासपुर रायपुर और बस्तर जिन संभाग थे। बाद में सरगुजा और दुर्ग नए संभाग बने। छत्तीसगढ के उत्तर पश्चिम में मध्यप्रदेश दक्षिण पश्चिम में महाराष्ट उत्तर पूरब में झारखंड है। दक्षिण में इससे तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की सीमाएं लगी है। राज्य की एक तिहाई आबादी आदिवासियों की है। छत्तीसगढ में गोंड हल्बा धुर्वा सरगुजा कनार जैसी आदिवासी जातियां प्रमुख हैं। 

छत्तीसगढ के लोग अपने राज्य को महतारी यानी मां कास्थान देते हैं। छत्तीसगढ में लोककलाएं संस्कृति बहुत फली फूली है। छत्तीसगढ में त्योहार को तिहार कहा जाता है। यहां अलग-अलग जनजातियों के भी मनोरम त्यौहार बस्तर दशहरा बस्तर लोकोत्सव कोरिया मेला, फागुन बडाई, गोंचा महोत्सव, तीजा महोत्सव, पोला महोत्सव जैसे कई उत्सव त्यौहार छत्तीसगढ को विविध रंग देते हैं। छत्तीसगढ की सांस्कृतिक विरासत समृद्ध है। यहां की जीवंत और अदित्य जीवंत संस्कृति है। यहां की लगभग तीस से ज्यादा जनजातियों के अपने तीज त्यौहार हैं। छत्तीसगढ के जीवन में पंजवानी राउत नाचा पंथी, बांज गीत गौरा गीत, देवार गीत देवार नृत्य, झूमर आंगनई जात्रा आदि शामिल हैं। ये संस्कृति के रंग विविधता के साथ हैं। खासकर आदिवासी परंपराओं के नृत्य गीत यहां की कला संस्कृति को अलग स्वरूप देते हैं। छत्तीसगढ अपने शिल्प के लिए भी जाना जाता है। छत्तीसगढ का इतिहास अपनी गुफा चित्रों और स्थापत्य अवशेषों से भी जाना जाता है। 

छत्तीसगढ में कई पर्यटन स्थल है जो प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। छत्तीसगढ के बल्गेश्वरी दंतेश्वरी मंदिर के अलावा केंदई वाटर फाल चिरमिरी, झुमका बांध, दलहा पहाड कैलाश गुफा, गोमरदा अभ्यारण, कांकर पेलेस चित्रकोट जलप्रपात कांगेर धार जल प्रपात आदि स्थलों में पर्यटक आते हैं। छत्तीसगढ में लोह स्पात भिलाई कारणाना और कोरबा में भारतीय एल्मूनियम कंपनी इसके गौरव को बढाती है। छत्तीसगढ़ में खनिज संपदा की प्रचुरता है। कोटला बाकसाइट, लोह अय्स्क चूना यहां उपलब्ध होता है। छत्तीसगढ कई राज्यों को बिजली खनिज इस्पात उपलब्ध कराता है। 

छत्तीसगढ की खेती में खरीफ का खास महत्व है। राज्य में 83 खेती खरीब की फसल की होती है। छत्तीसगढ धान का कटोरा कहलाता है। 17 प्रतिशत फसल रबी की है। राज्य की फसल में धान गेंहू मक्का तिलहन प्रमुख है। अब मसालों के लिए भी छत्तीसगढ अपनी नई पहचान बना रहा है। अदरक धनिया लहसून की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। छत्तीसगढ राज्य ने नक्सलवाद के दंश को भी झेला है। लेकिन समय के साथ अब नक्सलवाद पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है। धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो रही है। लेकिन इसके चलते यहां की प्रगति पर असर पड़ा है। यहां का जीवन पर फर्क पड़ा है। छत्तीसगढ के लोगों ने तमाम मुश्किलों को झेलते हुए अपने जीवन के रंगो को बचा कर रखा। छत्तीसगढ ने अपना मिजाज नहीं खोया।
  
देश की आजादी में इस क्षेत्र का अपना बड़ा योगदान रहा है। आदिवासियों ने भी  देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दिया। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद धीरे धीरे अपना विकास कर रहा है। इस समय राज्य की प्रति व्यक्ति आय 120704 रुपए प्रति वर्ष है। 2002-2023 में अल्प वर्षा सूखा का का दौर भी राज्य ने झेला है। राज्य में साक्षरता का प्रतिशत 65 प्रतिशत है। 23 सालों के इस सफर में छत्तीसगढ आगे बढने के लिए प्रयास कर रहा है। छत्तीसगढ के लोग इस संकल्प से जुड़े हैं।
 
छत्तीसगढ का एक सबल पक्ष यह भी है कि यहां सियासी स्थिरता रही है। राज्य बनने के साथ ही कांग्रेस के अजित जोगी राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने थे।  एक नवंबर 2000 से  दिसंबर 2003 तक वह सत्ता में रहे। राज्य बनने के बाद  2003 में छत्तीसगढ में पहली बार चुनाव कराए गए। बीजेपी ने 39 .2 प्रतिशत मत लेकर 50 सीट हासिल की। जबकि कांग्रेस ने 36 प्रतिशत मत के साथ 37 सीटें हासिल की। एक सीट बसपा और एक एनसीपी ने हासिल कीथी। बीजेपी नेता रमन सिंह ने छत्तीसगढ की सत्ता को संभाला। इसके बाद तीन बार वह राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे।  2018 के चुनाव में कांग्रेस ने शानदार सफलता हासिल की। भूपेश बघेल राज्य के मुख्यमंत्री बने। राज्य की जनता एक बार फिर सरकार चुनने के लिए मतदान करने जा रही है।