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भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को ले जाया जाएगा थाईलैंड, 26 दिन दर्शन कर सकेंगे लोग

दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संजोकर रखे गए भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों अराहाटा सारिपुत्र और अराहाटा मौदगलायन के कुछ पवित्र अवशेषों को 22 फरवरी से 18 मार्च तक थाईलैंड में लोगों के दर्शन के लिए रखा जाएगा। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि ये पहली बार होगा कि भगवान बुद्ध और उनके शिष्यों के पवित्र अवशेषों को एक साथ प्रदर्शित किया जाएगा। इसमें कहा गया है कि अरहाता सारिपुत्र और अरहाता मौदगलायन के पवित्र अवशेषों को थाईलैंड भेजने के लिए सांची से दिल्ली लाया गया। 

दुनिया भर के बौद्ध अनुयायियों के पूजित इन अवशेषों को 22 फरवरी को भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान में ले जाया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि अवशेष उसी दिन पूर्वाह्न में 'राज्य अतिथि' के रूप में थाईलैंड पहुंचेंगे। केंद्रीय संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने कहा कि दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे गए भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों के 20 टुकड़ों में से चार को थाईलैंड में प्रदर्शित किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि थाईलैंड के साथ भारत के पुराने संबंधों को देखते हुए, ये एशियाई देश के साथ भारत के लिए एक "राजनयिक उपलब्धि" भी होगी। मंत्रालय ने कहा कि बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर और केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में 22 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल अवशेषों के साथ थाईलैंड जाएगा।

ये अवशेष ईसा पूर्व चौथी-पांचवीं शताब्दी के हैं और 1970 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों की एक टीम को  पिपरहवा में खुदाई के दौरान मिले थे। इसे प्राचीन कपिलवस्तु स्थल का एक हिस्सा माना जाता है। एएसआई ने 1971-77 के दौरान तत्कालीन निदेशक (पुरातत्व) के. एम. श्रीवास्तव की देखरेख में पिपरहवा में खुदाई की थी। 

मंत्रालय की नोट के मुताबिक, उत्खनन टीम ने दो खुदे हुए स्टीटाइट पत्थर के ताबूत की खोज की थी। इसमें एक बड़े ताबूत से 12 पवित्र अवशेष और एक छोटे ताबूत से 10 पवित्र अवशेष मिले थे। पिपरहवा आज के उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में पड़ता है।

मोहन ने बताया कि अवशेषों के इन 22 टुकड़ों (हड्डी के टुकड़े) में से 20 राष्ट्रीय संग्रहालय में और दो कोलकाता में भारतीय संग्रहालय में रखे गए। भगवान बुद्ध ने 80 साल की उम्र में कुशीनगर में महापरिनिर्वाण हासिल किया था।

"कुशीनगर के मल्लों ने 'सार्वभौमिक राजा' ('चक्रवर्तिन') के अनुरूप समारोहों के साथ उनके शरीर का अंतिम संस्कार किया। अंतिम संस्कार की चिता से उनके पवित्र अवशेषों को जमा किया गया, विभाजित किया गया और कुशीनगर के ब्राह्मण पुजारी धोना ने राजाओं और पुजारियों को दे दिया।