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तेलंगाना की कमान अब रेवंत रेड्डी के हाथ

तेलंगाना की कमान अब रेवंत रेड्डी के हाथ में है। कांग्रेस हाइकमान ने रेंवत रेड्डी पर अपना भरोसा जताया है। दक्षिण के राज्य तेलंगाना में जिस तरह राज्य कांग्रेस के नेताओं में रेवंत रेड्डी ने प्रचार की मुहीम संभाली हुई थी उससे काफी कुछ संकेत मिल रहे थे कि कांग्रेस के सत्ता के सत्ता में आने के बाद रेवंत रेडेडी ही मुख्यमंत्री बनेंगे। खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन पर शुरु से ही भरोसा जताया हुआ था। चुनाव प्रचार के दौरान भी राहुल गांधी कई सभाओं में मंच पर रेवंत रेड्डी के साथ सेल्फी खींचते नजर आए थे। 

रेवंत रेड्डी के सामने राज्य में कांग्रेस की शानदार जीत और हाइकमान का साथ होने के बावजूद कुछ अड़चने भी थी। रेवंत रेड्डी 2017 में ही कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनकी पृष्ठभूमि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और टीडीपी से जुडी रही। तेलंगाना कांग्रेस के धाकड़ नेता उत्तम कुमार रेड्डी और भट्टी विक्रमार्क जैसे नेताओं के समर्थक इस बात को दबे स्वरों में उठा रहे थे। साथ ही तेलंगाना में जो रुख आए हैं उसमें अजब यह भी था कि रेवंत रेड्डी अपनी एक सीट कामारेड्डी में तीसरे नंबर पर आए। यह वही सीट है जिसमें मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को भी पराजय देखनी प़ड़ी। बीजेपी को यह सीट हासिल हुई। इसके अलावा रेवंत रेड्डी मलयगिरी लोकसभा क्षेत्र से भी एक सीट नहीं जिता पाए। उनके अपने जिलों के बेहतर नतीजे नहीं आए। जबकि दलित नेता उत्तम कुमार रेड्डी ने नलगौंडा से 12 में 11 सीट कांग्रेस को मिली । वहीं कांग्रेस विधायक दल के नेता भट्टी विकमार्क के खम्माम में 10 में 9 सीट कांग्रेस को मिली। लेकिन कांग्रेस हाइकमान ने इनन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए अगर रेवंत रेड्डी को ही राज्य का नेतृत्व सौंपा है तो उसके पीछे कई कारण है। शायद मध्यप्रदेश राजस्थान की पराजय ने भी कांग्रेस को अहसास कराया है कि पुराने अनुभव को तरजीह देना ही सबकुछ नहीं होता। रेवंत रेड्डी ने वास्तव में कांग्रेस के लिए एक बड़ा आधार बनाया। उन्होंने अपनी खास शैली में केसीआर सरकार को इस तरह घेरा कि उनकी मजबूत मानी जा रही सरकार ढह गई। लोगों में यह संदेश गया कि रेवंत रेड्डी को नेतृत्व मिलेगा तो राज्य में जो सिथिलता है वो दूर होगी। कहीं न कहीं केसीआर सरकार के भष्टाचार और परिवारवाद से नाराज लोगों को  रेवंत रेडडी का मुखर होना पसंद आया। रेवंत रेड्डी ने शुरू से इसमें कोई कमी कसर नहीं छोड़ी। चुनाव के दौरान भी वह रोज चार चार रैलियां संबोधित करते रहे।  रेवंत रेड्डी तेंलगाना कांग्रेस के अकेले नेता थे जिनकी चर्चा उत्तर भारत में भी थी। तेलंगाना की सियासत केलिए यह शुभ है कि वहां नेतृत्व रेवंत रेड्डी के पास होगा तो विपक्ष में बंदी संजय जैसे तेजतर्रार नेता है। कहा जा सकता है कि बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत जब बंदी संजय कुमार को अग्रिम पंक्ति से हटाया तो रेवंत रेड्डी को और खुलने का मौका मिला।शुरु में बढत ले रही बीजेपी थोड़ी सुस्त पड़ी वहीं कांग्रेस का प्रचार अभियान और धारदार हो गया। इसकी मुहीम केसीआर ने ही संभाली। 

रेवंत रेड्डी ने धुआंधार प्रचार किया। उनके भाषणों का असर हुआ। वह इस बात को मानते हैं कि एबीवीपी में रहते हुए उन्होंने भाषण करने कीकला सीखी। रेवंत रेड्डी उस्मानिया विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति में आए थे। एवीबीपी में रहते हुए वह आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू के संपर्क में आए। नायडू ने उन्हें रेड्डी समुदाय पर पकड बनाने के लिए कहा और किसानों से जुडने के लिए प्रेरित किया। 2009 में उन्होंने टीडीपी के टिकट पर कोंडागल कीसीट जीती थी। 2014 में वह टीडीपी में सदन के नेता बने। आँध्र प्रदेश में जब टीडीपी का सितारा कमजोर हुआ तो उन्होंने  कांग्रेस की राह थामी । अपनी संगठन सक्षमा और तेजतर्रार छवि के चलते वह कांग्रेस में अपना स्थान बनाते गए। यह उनका करिश्मा ही था कि जब उन्हें संगठन में प्रदेश का नेतृत्व सौंपा गया तो कांग्रेस के कई नेता उनके बारे में जानकारी ले रहे थे। लेकिन हाईकमान ने उनकी क्षमता को जान लिया था। तेलंगाना में कुछ महीने पहले तक कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में नहीं थी। यहां भी पार्टी गुटबाजी से जूझ रही थी। लेकिन इन सबसे अलग रेवंत रेड्डी किसी भी तरह कांग्रेस को जीत हासिल कराने के लिए प्रतिबद्ध थे। चेरापल्ली की सेंट्रल जेल से बाहर निकलते हुए उस दिन को तेलंगाना के लोग भूले नहीं होंगे जब उन्होंने बयान दिया था कि चंद्रशेखर राव का राजनीतिक आधार नहीं बचेगा। वह सियासत की अपनी आखरी पारी खेल रहे हैं। वास्तव में कांग्रेस के नेता की अगर तेलंगाना में ताजपोशी हो रही है तो इसके पीछे रेवंता रेड्डी का बहुत बड़ा संघर्ष है। यह वही नेता थे जिन्होंने बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष रामाराव के कथित अवैध फार्महाउस के ऊपर ड्रोन उड़ाकर सबका ध्यान खींचा था। सियासत करने की उनकी अपनी शैली रही है। उनके तेवर हमेशा तीखे रहे हैं। केसीआर की कोसी यात्रा के समय भी उन्होंने जोरदार विरोध किया था। जनता पार्टी के पूर्व नेता केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी की भतीजी गीता रेड्डी उनकी पत्नी है। तेलंगाना में रेवंता रेड्डी लोकप्रिय नेता है। लेकिन भारी कर्ड मे चल रहे तेलंगाना को वित्तीय संकट से उबारने और विकास की राह पर ले जाने की उनकी अहम जिम्मेदारी है। साथ ही उन्हें संगठन को भी साध कर रखना होगा। हालांकि अभी पार्टी में तेलंगाना में छत्तीसगढ या राजस्थान जैसे विरोध के स्वर नहीं है।  तेलंगाना के चुनाव में कांग्रेस ने 119 में  64 सीटें जीती है। यह पिछली बार से 49 सीटें ज्यादा है। लेकिन रेवंत रेड्डी इस बात को अच्छी तरह महसूस कर रहे होंगे कि राज्य के लोगों ने केसीआर के भ्रष्टाचार और पिरवारवाद के खिलाफ मतदान किया है। इससे उन्हें कांग्रेस के प्रति अच्छे शासन की अपेक्षा होगी। बीजेपी राज्य में तेजी से आगे बढ रही है। उनके सामने आगे की यह एक चुनौती होगी। इसके साथ ही कांग्रेस ने कई तरह की गारंटियां दी है। मतदाताओं के भरोसे पर पार्टी को उतरना होगा।
 
तेलंगाना में सत्ता बदली है। बीआरएस की तरह कांग्रेस ने भी चुनाव के समय कई तरह की लुभावनी वादे जनता के साथ किए हैं। गौरतलब बात यह भी है कि तेलंगाना राज्य पर वितीय कर्ज का बोझ है। रेवड़ी बांटने में कांग्रेस बीआरएस से आगे निकल गई। ऐसे में अब राज्य के मतदाताओं की अपेक्षाओं को पूरा करने का दायित्वहै। कांग्रेस ने लक्ष्मी योजना,  500 रुपए में गैर सिलेंडर, कल्याण लक्ष्मी योजना रायतु भरोसा जैसी योजनाओं को सामने रखा है। ऐसी कई योजनाओं और वादों को धरातल पर उतारने की जिम्मेदारी है। राज्य में बीआरएस नेता केसीआर के प्रति जनता का आक्रोश भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ रहा है। इसलिए कांग्रेस के सैमने स्वच्छ शासन देने की चुनौती भी होगी। देखा जाए तो कांग्रेस को अब बीआरएस से ज्यादा बीजेपी की सियासी गतिविधियों पर नजर रखनी होगी। कांग्रेस ने 64 सीटों के साथ भले ही सरकार बनाई हो। लेकिन बीजेपी के आकड़े उसे उत्साहित करने वाले हैं। एक सीट पर रहने वाली बीजेपी ने इस बार आठ सीटे हासिल की है। खासकर नोर्थ तेलंगाना में उसे अच्छी सफळता मिली है। यहां की सात सीटें बीजेपी ने हासिल की है। बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत चुनाव में बंदी संजय की जगह मुहीम केंद्रीय मंत्री के हाथ सौंपी। इसका असर हुआ। राज्य में बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान की गति में कमी आई। लेकिन वे जिस तेवर के नेता है उससे अब आगे वह फिर उसी तेवर के साथ होंगे। वहीं बीजेपी ने फायरब्रांड नेता टी राजा को भी शामियाने में वापस लिया है। बीजेपी ने इस बार पिछली बार की तुलना में अपना मत प्रतिशत सात प्रतिशत बढाया है। बीजेपी को 13 .9 प्रतिशत मत मिले हैं।  तेलंगाना में रेवंता रेड्डीको सरकार और संगठन में समवन्य बनाए रखने की चुनौती भी है। उनके मंत्रिमंडल में वे सदस्य भी होंगे तो कांग्रेस के पुराने धुरंधर हैं। जिनकी क्षेत्रों में अपनी पकड रही है। ऐसी तमाम चुनौतियों को रेवंत रेड्डी अगर आगे निकलते हैं तो भविष्य में वह न केवल कांग्रेस की दक्षिण राजनीति के बल्कि शीर्ष स्तर के नेताओं में भी शुमार होंगे। उनके पास समय भी है।

Written By- वेल विलास उनियाल