केरल हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी की है. मामला वैवाहिक विवाद को लेकर था. इस मामले को जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस जी गिरीश की बेंच सुन रही थी. कोर्ट ने कहा कि किसी भी पत्नी से यह उम्मीद नहीं किया जाना चाहिए कि वो अपने जीवन-साथी की खुशी के लिए अपने साथ हो रहे क्रूरता, अत्याचारों को सहे और अपने मानसिक स्वास्थय को ताक पर रखे
केरल हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की तरफ से दायर की गई याचिका खारिज करते हुए टिपण्णी की. दरअसल व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट में पत्नी की तरफ से की गई क्रूरता और परित्याग को आधार बना विवाह को खत्म करने के लिए याचिका दायर की थी. जिसे फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया.
पति के क्या आरोप थे?
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसकी पत्नी ने उसके साथ मौखिक और भावनात्मक स्तर पर बुरा बर्ताव किया. जो पत्नि का अपने विवाह और पति को लेकर दायित्व, कर्तव्य होता है उसे पूरा करने से इनकार कर दिया. नतीजन पत्नी के इस रवैये से उनके घर में कलेश हुआ और उन दोनों के रिश्ते में अलगाव ने जगह ले ली. पति ने आगे यह भी आरोप लगाया कि पत्नी ने उनके और उनके परिवार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत झूठी शिकायतें दर्ज कीं.